डिजिटल भारत को संभालने का नया तरीका – CSEP की रिपोर्ट ने उठाए बड़े सवाल
जब एक ही काम के लिए दस विभाग हों, तो क्या होगा ? : –
दोस्तों, आज हम बात करेंगे एक ऐसी रिपोर्ट की जो भारत के डिजिटल भविष्य के बारे में कुछ बहुत जरूरी सवाल उठाती है। Centre for Social and Economic Progress (CSEP) ने हाल ही में “Governing Digital India: A Report on Institutions and Instruments” नाम से एक रिपोर्ट जारी की है, और इसमें जो बातें कही गई हैं, वो काफी सोचने पर मजबूर करती हैं।
सीधी भाषा में कहें तो रिपोर्ट का मुख्य मुद्दा ये है – भारत की डिजिटल गवर्नेंस अभी कई मंत्रालयों और एजेंसियों में बिखरी हुई है, जिससे इनोवेशन धीमा हो रहा है और नियमों में भ्रम पैदा हो रहा है।
कल्पना कीजिए – एक ही काम के लिए आपको 5-6 जगह दौड़ना पड़े। एक विभाग कुछ और कहे, दूसरा कुछ और। ये ही हाल है अभी भारत की डिजिटल दुनिया के नियमों का!
समस्या क्या है ? एक उदाहरण से समझें : –
मान लीजिए आप कोई OTT प्लेटफॉर्म शुरू करना चाहते हैं – जैसे Netflix या Hotstar। अब ये प्लेटफॉर्म क्या है? ये इंटरनेट पर वीडियो दिखाता है (Content), इसके लिए इंटरनेट कनेक्शन चाहिए (Carriage/Infrastructure), और इसके डेटा प्रोटेक्शन और साइबरसिक्योरिटी के नियम भी फॉलो करने होंगे (Conduct)।
तो अब सवाल – किसकी परमिशन लेनी होगी? Information Technology Act, 2000 को MeitY देखता है, टेलीकॉम को DoT, ब्रॉडकास्टिंग को I&B Ministry, डेटा प्रोटेक्शन को फिर से MeitY, कंपटीशन को CCI, साइबरसिक्योरिटी को MeitY, DoT, MHA और NSCS सब मिलकर।
भाई, सिर घूम गया न? यही तो दिक्कत है!

3Cs फ्रेमवर्क – एक नया नज़रिया
CSEP की रिपोर्ट ने डिजिटल इकोसिस्टम को समझने के लिए एक बहुत ही सरल फ्रेमवर्क दिया है – 3Cs: Carriage, Content, और Conduct।
- पहला C – Carriage (ढुलाई/बुनियादी ढांचा) : – Carriage का मतलब है वो बुनियादी ढांचा जिस पर डेटा यात्रा करता है – जैसे तार वाली टेक्नोलॉजी (कॉपर केबल, ऑप्टिकल फाइबर) या वायरलेस टेक्नोलॉजी (मोबाइल नेटवर्क, Wi-Fi, सैटेलाइट)।आसान भाषा में – जैसे सड़क और रेलवे ट्रैक चीज़ों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं, वैसे ही ये डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर डेटा को ले जाता है। BharatNet, 5G नेटवर्क, ये सब Carriage के उदाहरण हैं।
- दूसरा C – Content (सामग्री) : – Content में डेटा, आवाज़ और वीडियो शामिल है, और भविष्य में शायद टच, गंध और स्वाद भी! जी हां, आपने सही पढ़ा। टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ रही है कि शायद एक दिन इंटरनेट पर खुशबू और स्वाद भी भेजे जा सकेंगे। फिलहाल – WhatsApp मैसेज, YouTube वीडियो, Netflix फिल्में, ये सब Content के उदाहरण हैं।
- तीसरा C – Conduct (आचरण/नियम) : – Conduct में कंपटीशन (प्रतिस्पर्धा), साइबरसिक्योरिटी, डेटा प्रोटेक्शन और सस्टेनेबिलिटी (टिकाऊपन) जैसे मामले आते हैं।
यानी – क्या कंपनियां सही तरीके से काम कर रही हैं? क्या हमारा डेटा सुरक्षित है? क्या बाजार में एकाधिकार तो नहीं बन रहा? क्या पर्यावरण को नुकसान तो नहीं हो रहा?
मौजूदा व्यवस्था की दिक्कतें : –
हर राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेश के पास एक IT विभाग है और कम से कम एक IT पॉलिसी है। TRAI, RBI, CCI, UIDAI जैसी कई संस्थाएं डिजिटल इकोसिस्टम के अलग-अलग हिस्सों को नियंत्रित करती हैं।
और ये सिर्फ शुरुआत है! गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, NITI Aayog – सबकी इस डोमेन में दिलचस्पी है।
नतीजा क्या होता है ? : –
समानांतर और अक्सर असंयोजित प्रयास होते हैं, जिससे असंगत और विरोधाभासी नतीजे आते हैं। सीमित सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी के अलावा, ये भ्रम पैदा करते हैं और कभी-कभी एजेंसियों के बीच विवादों के लिए लंबी लिटिगेशन होती है।
साइबरसिक्योरिटी MeitY, DoT और गृह मंत्रालय के बीच बंटी हुई है। इस पैचवर्क से किसी विषय की जिम्मेदारी को लेकर अस्पष्टता, व्यापार करने में कठिनाई और नियामक अतिक्रमण होता है।

वैश्विक तुलना – हम कहां खड़े हैं ? : –
भारत Network Readiness Index (2024) में 49वें, UN E-Government Development Index में 97वें, और Global Innovation Index में 39वें स्थान पर है।
हां, साइबरसिक्योरिटी में हम अच्छा कर रहे हैं – IMF Global Cybersecurity Index में 98.5 स्कोर। लेकिन AI तैयारी में हम केवल 0.5 (1 के पैमाने पर) पर हैं।
भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था है – अमेरिका और चीन के बाद। लेकिन हमारी रैंकिंग बताती है कि गवर्नेंस में काफी सुधार की गुंजाइश है।
रिपोर्ट का बोल्ड प्रस्ताव – एक मंत्रालय, एक कानून, एक रेगुलेटर
अब आते हैं सबसे दिलचस्प हिस्से पर। CSEP की रिपोर्ट ने एक एकीकृत, यूनिफाइड “Ministry of Digital Ecosystem” बनाने का साहसिक प्रस्ताव रखा है।
ये “One Ministry, One Law, One Regulator, One Tribunal” के सिद्धांत पर काम करेगा। यानी :
- एक ही मंत्रालय जो टेलीकॉम, ब्रॉडकास्टिंग और IT को देखे
- एक ही कानून जो सब पर लागू हो
- एक ही नियामक संस्था (Regulator)
- एक ही विशेष ट्रिब्यूनल विवादों के लिए
फायदे क्या होंगे ? : –
यूनिफाइड फ्रेमवर्क अलग-अलग नियमों से उत्पन्न भ्रम और संभावित टकरावों को खत्म करेगा और कंटेंट क्रिएटर्स और कैरियर्स के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा।
इससे इनोवेशन को बढ़ावा मिलेगा, अनिश्चितता कम होगी, और भविष्य के लिए तैयारी बेहतर होगी (CNBC) (Nasdaq) ।
सावधानियां भी जरूरी
लेखकों ने चेतावनी दी है कि एक संस्था में बहुत ज्यादा शक्ति केंद्रित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि CCI और आने वाली Digital Markets Unit जैसी मौजूदा संस्थाएं कंपटीशन, डेटा प्रोटेक्शन और साइबरसिक्योरिटी जैसे मामलों को सेक्टोरल रेगुलेटर के साथ समन्वय में संभालती रहें।
ये भी पढ़े : – भारत का नया क्लाइमेट टारगेट: दिसंबर तक UN को सौंपेगा 2035 का प्लान
तीन विकल्प, तीन रास्ते
रिपोर्ट ने आगे बढ़ने के लिए तीन विकल्प प्रस्तावित किए हैं :
- पहला विकल्प: Status Quo (जैसे चल रहा है वैसे ही)
मौजूदा व्यवस्था बनाए रखो
बस समन्वय बेहतर करो
सबसे आसान, लेकिन समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं - दूसरा विकल्प: Partial Consolidation (आंशिक एकीकरण)
Carriage और Content को दो मंत्रालयों में समेटो
Conduct के लिए अलग व्यवस्था
बीच का रास्ता - तीसरा विकल्प: Full Integration (पूर्ण एकीकरण)
एक Ministry of Digital Ecosystem - एक रेगुलेटर, एक कानून
सबसे साहसिक, लेकिन सबसे प्रभावी
RACE फ्रेमवर्क – सुधार का रोडमैप : –
रिपोर्ट ने सुधार के लिए RACE फ्रेमवर्क भी पेश किया है:
R – Recognise (पहचानो): समस्याओं को स्वीकार करो
A – Adopt (अपनाओ): बेहतर प्रथाओं को अपनाओ
C – Catalyse (उत्प्रेरक बनो): बदलाव की प्रक्रिया शुरू करो
E – Encourage (प्रोत्साहित करो): इनोवेशन और विकास को बढ़ावा दो
दूसरे देशों से सीख : –
मलेशिया का कम्युनिकेशन रेगुलेटर (MCMC) और एस्टोनिया की डिजिटल गवर्नेंस संरचना – दोनों को स्पष्टता और समन्वय के लिए उदाहरण के तौर पर बताया गया है।
मलेशिया में एक ही संस्था सब कुछ देखती है। एस्टोनिया तो डिजिटल गवर्नेंस में विश्व में अग्रणी है – वहां ई-रेजिडेंसी से लेकर ई-वोटिंग तक सब कुछ सुव्यवस्थित है।

भारत का डिजिटल अर्थव्यवस्था का हाल : –
- 2022-23 में डिजिटल अर्थव्यवस्था का GDP में योगदान 11.74% था, और 2024-25 तक इसके 13.42% होने का अनुमान है।
- 2029-30 तक डिजिटल अर्थव्यवस्था के GDP में 20% योगदान की उम्मीद है, जो कृषि और विनिर्माण से भी आगे निकल जाएगा!
- UPI की सफलता – जब व्यवस्था सही हो तो
UPI ट्रांजेक्शन FY24 में 131.14 बिलियन से बढ़कर FY25 में 185.85 बिलियन हो गए – 42% की वृद्धि। वैल्यू के मामले में ये 199.96 लाख करोड़ से बढ़कर 260.56 लाख करोड़ हो गई – 30% की वृद्धि।
ये दिखाता है कि जब नियम सरल हों, व्यवस्था सुगम हो, तो भारत की डिजिटल क्रांति कितनी तेज़ हो सकती है!
चुनौतियां जो सामने हैं : –
- टेक्नोलॉजी का तेज़ बदलाव
AI, Robotics और IoT जैसी नई टेक्नोलॉजी लगातार विकसित हो रही हैं, साथ ही डिजिटल पेमेंट, ई-कॉमर्स, टेली-एजुकेशन और टेली-मेडिसिन जैसी ई-सेवाएं बढ़ रही हैं। - 1854 में बना Telegraph Act आज तक चल रहा था! अब भले ही 2023 में Telecommunications Act आ गया है, लेकिन दृष्टिकोण अभी भी ऊर्ध्वाधर रूप से अलग-अलग है।
- Convergence (अभिसरण) का मुद्दा
व्यावहारिक रूप में convergence पहले ही हो चुका है। ऑनलाइन स्ट्रीमिंग, डिजिटल पेमेंट और टेलीमेडिसिन जैसी सेवाएं पुरानी सेक्टोरल सीमाओं को पार करती हैं, फिर भी इन्हें पुराने युग के लिए बने कानूनों से नियंत्रित किया जाता है।
Netflix देखिए – ये क्या है? टीवी चैनल? इंटरनेट सेवा? कंटेंट प्रोवाइडर? सब कुछ! लेकिन कानून अभी भी इन्हें अलग-अलग मानता है।
आम आदमी के लिए क्यों मायने रखता है ?
आप सोच रहे होंगे – ये सब सरकारी मामला है, हमें क्यों परवाह करनी चाहिए ?
दोस्तों, ये आपके रोज़मर्रा की जिंदगी को प्रभावित करता है:
- जब नियम जटिल होते हैं, तो कंपनियां नई सेवाएं लॉन्च करने में देर करती हैं
- अनावश्यक रेगुलेशन की लागत अंततः आप तक पहुंचती है – महंगी सेवाओं के रूप में
भ्रमित व्यवस्था में इनोवेशन धीमा हो जाता है - डेटा सुरक्षा और प्राइवेसी जैसे महत्वपूर्ण मामले कई संस्थाओं के बीच फंस जाते हैं
Next Generation Reforms Committee की भूमिका : –
सरकार द्वारा हाल ही में गठित Next Generation Reforms Committee को इस पर विचार करना चाहिए और ठोस मील के पत्थर और स्पष्ट जवाबदेही के साथ एक रोडमैप की सिफारिश करनी चाहिए।
ये कमेटी ही तय करेगी कि भारत की डिजिटल गवर्नेंस किस दिशा में जाएगी।
इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया : –
प्रमुख इंडस्ट्री एक्टर्स और एसोसिएशन ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है, इसे जिम्मेदारियों को स्पष्ट करने और भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में नियामक प्रक्रियाओं को आसान बनाने के तरीके के रूप में देखते हुए।
Startup Policy Forum की President Shweta Rajpal Kohli और IIIT बैंगलोर के प्रोफेसर V. Sridhar जैसे एक्सपर्ट्स ने इस पर चर्चा में हिस्सा लिया है।
बदलाव का वक्त : –
तो दोस्तों, CSEP की ये रिपोर्ट सिर्फ एक अकादमिक दस्तावेज़ नहीं है। ये भारत की इनोवेशन को प्रभावी नियामक निगरानी के साथ सामंजस्य बनाने की क्षमता की परीक्षा ले रही है।
भारत को डिजिटलाइजेशन की व्यापकता और गहराई का फायदा उठाने के लिए समय पर सुधार जरूरी है। जब तक हम इन सुधारों को नहीं करेंगे, हम अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, UPI जैसी सफलता की कहानियां हैं, और डिजिटल इंडिया का सपना है। लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए हमें अपनी गवर्नेंस संरचना को भी अपग्रेड करना होगा।
जैसा कि कहते हैं – “नई शराब को पुरानी बोतल में नहीं रखा जा सकता।” नई टेक्नोलॉजी के लिए नई गवर्नेंस की जरूरत है। देखते हैं कि सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है।
एक बात तो पक्की है – अगले कुछ सालों में भारत की डिजिटल गवर्नेंस में बड़े बदलाव होने वाले हैं। और ये बदलाव हम सबकी डिजिटल जिंदगी को प्रभावित करेंगे!