फिलिस्तीन को देश मानने की लड़ाई: एक आम इंसान की नजर से

 

ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे बड़े-बड़े देश अब फिलिस्तीन को एक आज़ाद देश मानने लगे हैं। मुझे थोड़ा अजीब लगा— इतने सालों से तो फिलिस्तीन का नाम सुनते आ रहे हैं, लेकिन अब जाकर उसे देश का दर्जा मिल रहा है?

तो मैंने सोचा, चलो थोड़ा समझते हैं कि ये मामला है क्या।

फिलिस्तीन की कहानी

फिलिस्तीन एक ऐसा इलाका है जो पश्चिम एशिया में है, जहां गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक जैसे क्षेत्र आते हैं। यहां के लोग दशकों से संघर्ष में जी रहे हैं। इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का विवाद बहुत पुराना है। 1948 में जब इजरायल बना, तब से ही फिलिस्तीन के लोग अपनी ज़मीन और पहचान के लिए लड़ते आ रहे हैं।

कई बार युद्ध हुए, कई बार समझौते हुए, लेकिन आज तक कोई ठोस हल नहीं निकला। फिलिस्तीन के लोग चाहते हैं कि उन्हें एक स्वतंत्र देश माना जाए, जैसे भारत, अमेरिका या जापान हैं।

फिलिस्तीन को देश मानने की लड़ाई: एक आम इंसान की नजर से
फिलिस्तीन को देश मानने की लड़ाई: एक आम इंसान की नजर से(image source-financial times)

अब तक क्या हुआ?

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 147 देश फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं। लेकिन अमेरिका और इजरायल जैसे ताकतवर देश अब भी इसे नहीं मानते। उनका कहना है कि फिलिस्तीन में आतंकवादी संगठन जैसे हमास सक्रिय हैं, इसलिए उन्हें देश का दर्जा देना खतरे से खाली नहीं।

हाल ही में ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस ने फिलिस्तीन को देश मानने की घोषणा की। ये बहुत बड़ा कदम है क्योंकि ये G7 जैसे ताकतवर देशों का हिस्सा हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी कहा कि “फिलिस्तीन को देश का दर्जा देना कोई इनाम नहीं, बल्कि उनका अधिकार है”।

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आम आदमी की नजर से

अब आप सोच रहे होंगे, “हमें इससे क्या?” लेकिन सोचिए, अगर किसी इंसान को उसकी पहचान ही न मिले, तो वो कैसे चैन से जी पाएगा? फिलिस्तीन के लोग सालों से बमबारी, बेरोजगारी और बेघर होने की तकलीफ झेल रहे हैं। उनके बच्चों को स्कूल नहीं मिलते, अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं होतीं, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी डर के साए में गुजरती है।

अगर उन्हें एक देश का दर्जा मिल जाता है, तो इंटरनेशनल मदद मिल सकती है, उनकी सरकार को अधिकार मिलेंगे, और शायद शांति की तरफ एक कदम बढ़ेगा।

इजरायल और अमेरिका क्यों विरोध कर रहे हैं?

इजरायल का कहना है कि फिलिस्तीन को देश मानना आतंकवाद को बढ़ावा देना है। उनका डर है कि अगर फिलिस्तीन को अधिकार मिल गए, तो हमास जैसे संगठन और ताकतवर हो जाएंगे। अमेरिका भी इसी तर्क पर फिलिस्तीन को मान्यता देने से बचता रहा है।

लेकिन सवाल ये है कि क्या हर फिलिस्तीनी आतंकवादी है? क्या हर गाजा का बच्चा बंदूक लेकर पैदा होता है? नहीं। वहां भी आम लोग हैं, जो सिर्फ शांति और सम्मान की ज़िंदगी चाहते हैं।

फिलिस्तीन को देश का दर्जा देना सिर्फ एक राजनीतिक फैसला नहीं है, ये इंसानियत का सवाल है। जब दुनिया के बड़े-बड़े देश उन्हें मान्यता देने लगे हैं, तो उम्मीद है कि एक दिन वो भी अपने झंडे के नीचे, अपनी ज़मीन पर, अपने अधिकारों के साथ जी सकेंगे।

हम तो आम लोग हैं, लेकिन जब किसी को न्याय मिलता है, तो दिल को सुकून जरूर मिलता है।

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