व्हाट्सएप मैसेज में जज पर आरोप लगाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट का फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बस्ती जिले के एक व्यक्ति कृष्ण कुमार पांडे पर आपराधिक अवमानना (Contempt of Court) का आरोप लगाया है। पांडे ने वकीलों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में एक संदेश पोस्ट किया था, जिसमें बस्ती के एडिशनल जिला जज (फास्ट ट्रैक कोर्ट-I) विजय कुमार कटियार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए थे। इसमें जज पर रिश्वत लेने, फर्जी और जाली आदेश पत्र बनाने, और न्यायिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप शामिल थे। इस संदेश का व्यापक प्रसार हुआ, जिससे न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची और उसके अधिकार को कम किया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह मामला अवमानना के तहत आपराधिक मुकदमे के लिए साबित पाया और पांडे के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की है। अदालत ने पांडे को नोटिस जारी किया है और 9 अक्टूबर 2025 को सुनवाई का दिन तय किया है।

पांडे ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि वह अपना बचाव खुद करेगा। अदालत ने उनकी आपत्तियां खारिज कर दीं, जैसे कि मुकदमा चलाने के लिए एडवोकेट जनरल की अनुमति जरूरी है और आरोपों की जांच के लिए आंतरिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि ऐसा कोई कानून या प्रक्रिया नहीं है जो इन दलीलों का समर्थन करती हो। अदालत ने यह भी ध्यान दिलाया कि वकीलों के व्हाट्सएप ग्रुप का दुरुपयोग रोकने के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए।

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यह मामला सामाजिक मीडिया और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्मों पर अभिव्यक्ति की आज़ादी और इसके कानूनी सीमाओं के बीच संतुलन के महत्व को रेखांकित करता है। न्यायपालिका की गरिमा, उसका सम्मान और उसके अधिकार की रक्षा करना जरूरी है, क्योंकि न्यायिक प्रणाली की प्रतिष्ठा से ही लोगों का उस पर विश्वास कायम रहता है। किसी भी तरह के सनसनीखेज और बिना प्रमाण के आरोप न्यायपालिका की विश्वसनीयता को चोट पहुंचा सकते हैं, इसलिए ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई की जाती है।

इस घटनाक्रम के जरिए यह भी स्पष्ट होता है कि न्यायालय आपत्तिजनक संदेशों और आरोपों को गंभीरता से लेता है, खासकर जब ये संदेश न्यायपालिका की गरिमा को प्रभावित करते हों। कानून व्यवस्था को बनाए रखने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई जरूरी समझी जाती है।

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इस पूरे मामले का अगला चरण 9 अक्टूबर 2025 को सुनवाई के रूप में होगा, जिसमें कृष्ण कुमार पांडे अपना बचाव पेश करेंगे और अदालत इस मामले को आगे बढ़ाएगी। यह देखना होगा कि अदालत इस मामले को किस रूप में देखती है और इससे भविष्य में सोशल मीडिया पर न्यायालयों के खिलाफ अभद्र और तथ्यों विपरीत आरोपों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

संक्षेप में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया है कि न्यायपालिका के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ गंभीर कानूनी कार्रवाई होगी, चाहे वह सोशल मीडिया के माध्यम से हो या किसी और तरीके से। इसीलिए, जब भी कोई व्यक्ति न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगाता है, उसे बहुत सोच-समझ कर और प्रमाण के साथ बोलना चाहिए, नहीं तो कानून उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकता है।

यह मामला आम आदमी के लिए यह सीख देता है कि न्यायपालिका का सम्मान करना और उसके खिलाफ बिना सबूत किसी को गाली-गलौज या गंभीर आरोप लगाने से बचना चाहिए, खासकर डिजिटल प्लेटफार्मों पर, क्योंकि इसके गंभीर कानूनी नतीजे हो सकते हैं।

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