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Islamic NATO (पाकिस्तान ने हाल ही में “ISLAMIC NATO” की तर्ज पर मुस्लिम देशों का संयुक्त सैन्य गठबंधन बनाने का प्रस्ताव दिया है)

पाकिस्तान ने हाल ही में “इस्लामिक NATO/ISLAMIC NATO” की तर्ज पर मुस्लिम देशों का संयुक्त सैन्य गठबंधन बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा हो गई है।

पाकिस्तान का प्रस्ताव और उसका उद्देश्य

Islamic NATO
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने दोहा में हुए अरब-इस्लामी आपातकालीन सम्मेलन में कहा कि मुस्लिम देशों को मिलकर एक ऐसा सैन्य संगठन बनाना चाहिए, जो पश्चिमी देशों द्वारा मध्य पूर्व में अस्थिरता फैलाने और बाहरी खतरों से साझा तौर पर निपट सके। इजराइल के हालिया हमले को इसका तर्क बनाते हुए, उन्होंने कहा कि मुस्लिम राज्यों को अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट होना ज़रूरी है। उन्होंने पश्चिमी देशों के तर्ज पर ISLAMIC NATO बनाने की बात कही।

मुस्लिम देशों की प्रतिक्रियाएँ : –

मिस्र : राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी ने इसका समर्थन करते हुए मुख्यालय काहिरा में बनाने की पेशकश की और 20,000 सैनिक भेजने का वादा किया।
तुर्की : राष्ट्रपति एर्दोगन ने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय रक्षा सहयोग और रक्षा उद्योग में साझा काम करना चाहिए।
इराक : प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने इस गठबंधन की आवश्यकता की बात की।
कतर, यूएई, ईरान : ये देश पारंपरिक रूप से भारत के करीबी रहे हैं और उनकी प्रतिक्रिया थोड़ी सतर्क मानी जाती है।

असहमति और चुनौतियां : –

कई मुस्लिम देशों के सुरक्षा हित और राजनीतिक मतभेद इतने व्यापक हैं कि सर्वसम्मति पाना मुश्किल है।
सऊदी अरब और ईरान के बीच मतभेद, इंटेलिजेंस शेयरिंग और संयुक्त ऑपरेशन्स में सहयोग की कमी इसका सबसे बड़ा रोड़ा है।
पहले ऐसे गठबंधन जैसे सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (CENTO) जल्दी विघटित हो गए थे।

भारत समेत अन्य देशों की चिंता : –

यदि पाकिस्तान इस गठबंधन का हिस्सा बनता है, तो कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है।
तुर्की और पाकिस्तान का सैन्य सहयोग पहले ही भारत के लिए चिंता का विषय रहा है।
भारत के दोस्त देश यूएई और कतर सहभागी बने तो भारत-पाक रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
हालांकि फिलहाल इसका मुख्य फोकस इजराइल के खिलाफ बताया जा रहा है, भारत को भविष्य में इससे रणनीतिक अस्थिरता की आशंका बनी रहेगी।

पाकिस्तान का “इस्लामिक NATO” प्रस्ताव मुस्लिम देशों के बीच सामूहिक सुरक्षा की नई संभावनाएं खोलता है, लेकिन इसके रास्ते में गहरे मतभेद और राजनीतिक बाधाएं भी हैं। क्षेत्रीय शक्तियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल बनाती है कि यह गठबंधन हकीकत का रूप ले पाएगा या नहीं।

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