कहानी: झारखंड की राजनीति में परिवारवाद का जाल
जब गाँव के चौपाल पर झारखंड की राजनीति की चर्चा होती है, तो अक्सर एक बात सुनाई देती है – राजनीति में परिवारों का दबदबा। ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की ताजा रिपोर्ट में ये बात साफ़ हो गई है कि झारखंड की राजनीति में वंशवाद गहराई तक फैला हुआ है। करीब 28% विधायक ऐसे हैं जिनका कोई परिवार पहले से राजनीति में है।
झारखंड के प्रमुख वंशवादी नेता और उनके परिवार : –
झारखंड की राजनीति में कुछ परिवार इतने प्रभावशाली हैं कि उनके नाम से ही राजनीति जुड़ी लगती है।
- शिबू सोरेन परिवार: झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन ने 1972 से पार्टी को मजबूत किया है। उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। वे अपने पिता की विरासत संभाले हुए हैं।
- रघुवर दास परिवार: भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की पुत्रवधू पूर्णिमा दास साहू को पार्टी ने टिकट दिया है, जो परिवारवाद की मिसाल मानी जाती है।
- अर्जुन मुंडा परिवार: पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा भी सक्रिय राजनीति में हैं। यह परिवार झारखंड की आदिवासी राजनीति में गहरा रोल निभाता है।
- चंपाई सोरेन परिवार: पांच बार चुनाव जीतने वाले पूर्व विधायक चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को भी भाजपा ने टिकट दिया।
- जयपाल सिंह मुंडा: झारखंड आंदोलन के नेता, जिनके नाम पर आदिवासी राजनीति की एक लहर है। हालांकि उनके परिवार का प्रभाव सीमित है, लेकिन उनकी विरासत आज भी याद की जाती है।
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महिलाओं की राजनीति में वंशवाद : –
रिपोर्ट बताती है कि झारखंड की लगभग 73% महिला विधायक भी अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। जैसे कई महिलाएं राजनीतिक परिवारों की सदस्य होकर राजनीति में आई हैं, तो कुछ परिवार अपनी महिला सदस्यों को आगे बढ़ाने में लगे हैं।
वंशवाद की राजनीति का असर : –
वंशवाद के कारण कई बार नई प्रतिभाओं को मौका नहीं मिलता। पारदर्शिता और जवाबदेही कम हो जाती है। लोग महसूस करते हैं कि राजनीति परिवार का व्यापार बन गई है, जिससे जनता की आवाज़ दब जाती है।
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पार्टियों का रुख और आरोप-प्रत्यारोप : –
भाजपा और झामुमो (जेएमएम) दोनों पर वंशवाद के आरोप लगते हैं। भाजपा ने खुद के अंदर वंशवाद का मुद्दा गंभीरता से झेला है, जबकि जेएमएम को बाप-बेटे की पार्टी कहा जाता है। झामुमो प्रवक्ता ने भी भाजपा पर परिवारवाद का जवाब दिया है।
झारखंड की राजनीति में वंशवाद की जड़ें गहरी हैं। रिपोर्ट और तथ्यों से ये साफ है कि परिवारों का दबदबा लोकतंत्र के ताने-बाने को प्रभावित कर रहा है। हालांकि राजनीतिक परिवारों की वजह से स्थिरता भी आती है, पर नई सोच और बदलाव के लिए वंशवाद की राजनीति से बाहर निकलना जरूरी है। आम जनता की उम्मीद है कि ये परंपरा टूटे और झारखंड की राजनीति में नई ऊर्जा और प्रतिभा का उदय हो