मेटा (Meta) ने अपने नए AI स्मार्ट ग्लासेस का डेमो 2025 के प्रमुख “Meta Connect” इवेंट में धूमधाम से किया, लेकिन यह डेमो स्टेज पर बुरी तरह फेल हो गया। मार्क जुकरबर्ग और उनकी टीम के लाख प्रयासों के बावजूद तकनीकी गड़बड़ियाँ सामने आ गईं, जिससे सोशल मीडिया पर चर्चा और आलोचनाओं की बाढ़ आ गई। यहाँ विस्तार से जानिए इस डेमो फेलियर की पूरी कहानी, इसके कारण और भविष्य के लिए सबक.
लाइव डेमो में क्या हुआ?

इस हाईप्रोफाइल इवेंट में जुकरबर्ग ने अपने Meta Ray-Ban Display ग्लासेस को लाइव स्टेज पर पेश किया। सबसे पहले उन्होंने AI असिस्टेंट से मैसेज रिप्लाई, कुकिंग और वीडियो कॉलिंग जैसे फीचर्स दिखाने की कोशिश की।
कुकिंग सेगमेंट में जब शेफ जैक मांकुजो ने “Hey Meta, start Live AI” कहकर कुकिंग असिस्टेंट से रेसिपी गाइडिंग करनी चाही, तो AI को बार-बार कंफ्यूज़न हुआ। रेसिपी के स्टेप्स जंप होते गए और AI बार-बार गलत कमांड देता रहा.
अगली कोशिश में ग्लासेस से लाइव WhatsApp वीडियो कॉल करनी थी, लेकिन जुकरबर्ग इस फीचर का डेमो खुद भी पूरा नहीं कर पाए। टेक्निकल गड़बड़ी के कारण कॉल कनेक्ट ही नहीं हुई और जुकरबर्ग को मंच पर ही रुकना पड़ा.
असफलता के पीछे की असल वजह :-

स्टेज पर जुकरबर्ग और शेफ ने पहले वाई-फाई को दोषी बताया, लेकिन डेमो के बाद कंपनी के CTO एंड्रयू बोसवर्थ ने असली कारण बताया—यह प्रोडक्ट फेलियर नहीं, बल्कि डेमो फेलियर था।
जैसे ही “Hey Meta, start Live AI” बोला गया, हॉल में मौजूद हर Ray-Ban Meta Glasses पर वह फीचर एक्टिव हो गया। सभी ग्लासेस से एक साथ कमांड कंपनी के सर्वर पर भेजी जाने लगी।
इस ‘डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल-ऑफ़-सर्विस’ (DDoS) इफेक्ट से डेमो सर्वर खुद ही हैंग हो गया, जो पहले कभी रिहर्सल में नहीं हुआ था.
WhatsApp कॉलिंग फीचर में एक नया, पहले न देखा गया बग आ गया—ग्लासेस डिवाइस कॉल आते ही स्लीप मोड में चली गईं, जिससे कॉल पिक नहीं हुआ.
टेक्नोलॉजी डेमो फेलियर का महत्व : –
ऐसे डेमो फेलियर्स बड़ी टेक कंपनियों के लिए शर्मनाक तो हैं, मगर इससे प्रोडक्ट के परफॉर्मेंस का अंदाजा नहीं लगाया जाना चाहिए।
Meta CTO का कहना है, “हमने खुद को डेमो के दौरान DDoS कर डाला, लेकिन प्रोडक्ट असल में चलता है।”
कई मीडिया विशेषज्ञ मानते हैं कि, डेमो के दबाव में रियल वर्ल्ड का ट्रैफिक मैनेज न कर पाने से यह गड़बड़ी हुई, जो आम यूजर अनुभव से बहुत अलग है.
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सोशल और बाजार प्रभाव : –
इवेंट के बाद सोशल मीडिया पर मीम्स और चर्चाएं चल पड़ी; आलोचकों ने इसे “डिस्कनेक्टेड टेक्नोलॉजी” की संज्ञा दी। हालांकि, शुरुआती समीक्षाओं में Meta के AI Glasses को इनके इनोवेटिव फीचर्स और स्मार्ट हार्डवेयर के लिए पसंद भी किया गया है।
लेकिन इस नाकामी ने कंपनी के मार्केटिंग और इंजीनियरिंग टीमों के लिए सीख दी है कि “लाइव डेमो” में टेक्निकल प्लानिंग और रिहर्सल कैसे होनी चाहिए.
Meta के AI ग्लासेस ने दुनिया के सामने तकनीक के नए सपने दिखाए, लेकिन स्टेज पर असफल रहने से कंपनी के लिए गंभीर सवाल भी खड़े हो गए हैं। यह घटना दिखाती है कि टेक्नोलॉजी चाहे कितनी भी इनोवेटिव हो, असल दुनिया के यूज केस और स्केलेबिलिटी का टेस्ट कभी-कभी मंच पर ही होता है.
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