Nepal General Election Date 2026: चुनाव कब? कैसे? कहाँ? पूरी जानकारी

नेपाल में आम चुनाव का कार्यक्रम जारी : 20 जनवरी को नामांकन, 5 मार्च को होगी वोटिंग

Gen Z आंदोलन के बाद अब चुनाव की बारी

नेपाल में पिछले दो महीनों से जो कुछ हुआ, उसे कहानी कहें या इतिहास, मगर यह बात तय है कि पड़ोसी मुल्क में युवा पीढ़ी ने अपनी ताकत का अहसास करा दिया। सितंबर में शुरू हुए जेन-जेड विरोध प्रदर्शनों ने पूरी सरकार को हिला डाला। अब उसी हंगामे के बाद नेपाल में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव आयोग ने रविवार को आधिकारिक तौर पर चुनाव का पूरा शेड्यूल जारी कर दिया है।

नेपाल का चुनाव आयोग 5 मार्च 2026 को होने वाले संसदीय चुनाव के लिए पूरी तैयारी में जुट गया है। यह चुनाव इसलिए खास है क्योंकि यह उन युवाओं की जीत का नतीजा है जिन्होंने भ्रष्टाचार और नेताओं के बच्चों की ऐश-ओ-आराम की जिंदगी के खिलाफ आवाज उठाई थी।

कब है नामांकन और कब होगी वोटिंग ?

  • चुनाव आयोग की तरफ से जारी नोटिस के मुताबिक, नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख तय कर दी गई है। उम्मीदवारों को 20 जनवरी 2026 को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक अपना नामांकन पेश करना होगा। यह प्रक्रिया चुनाव अधिकारी के दफ्तर में होगी।
  • उसी दिन शाम 5 बजे से 7 बजे के बीच उम्मीदवारों की शुरुआती सूची सार्वजनिक कर दी जाएगी। अगर किसी को किसी उम्मीदवार पर आपत्ति है तो वह *21 जनवरी को सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक* अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।
  • इसके बाद चुनाव आयोग 21 जनवरी दोपहर 3 बजे से लेकर 22 जनवरी शाम 5 बजे तक इन शिकायतों की जांच करेगा। फिर 22 जनवरी को शाम 5 से 7 बजे के बीच सत्यापित उम्मीदवारों की सूची जारी होगी।
  • जो उम्मीदवार अपना नामांकन वापस लेना चाहते हैं, उनके लिए *23 जनवरी को सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक* का समय तय किया गया है। इसके बाद उसी दिन दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच उम्मीदवारों की अंतिम सूची प्रकाशित होगी। और फिर शाम 4 से 7 बजे के बीच उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न बांटे जाएंगे।
  • वोटिंग का दिन *5 मार्च 2026* तय किया गया है। उस दिन सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक लोग अपना वोट डाल सकेंगे।
Nepal General Election Date 2026: चुनाव कब? कैसे? कहाँ? पूरी जानकारी
Nepal General Election Date 2026: चुनाव कब? कैसे? कहाँ? पूरी जानकारी

कैसे होगा चुनाव ? समझिए पूरी प्रणाली

नेपाल में चुनाव का तरीका थोड़ा अलग है। यहां 275 सीटों वाली प्रतिनिधि सभा के लिए चुनाव होता है। इसमें से 165 सीटें तो सीधे तरीके से चुनी जाती हैं – यानी जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले, वह जीत जाता है। इसे फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) सिस्टम कहते हैं।

बाकी 110 सीटें प्रमोशनल रिप्रेजेंटेशन (PR) सिस्टम से चुनी जाती हैं। इसमें पूरे नेपाल को एक चुनाव क्षेत्र माना जाता है और पार्टियों को जितने प्रतिशत वोट मिलते हैं, उसी अनुपात में सीटें मिलती हैं। यानी मतदाता को दो बैलेट पेपर मिलेंगे – एक सीधे उम्मीदवार के लिए और दूसरा पार्टी के लिए।

इस प्रणाली का फायदा यह है कि छोटी पार्टियों और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को भी संसद में जगह मिल जाती है। महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अन्य हाशिए के समुदायों के लिए PR सूची में विशेष कोटा भी रखा गया है।

क्यों हुए यह चुनाव ? सितंबर की कहानी 

यह चुनाव कोई साधारण चुनाव नहीं है। यह उस बड़े जन आंदोलन का नतीजा है जो सितंबर 2025 में नेपाल की सड़कों पर उतर आया था। बात शुरू हुई थी सोशल मीडिया पर पाबंदी से।

4 सितंबर को नेपाल सरकार ने एकदम से फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, एक्स (पहले ट्विटर) समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया। सरकार का कहना था कि यह प्लेटफॉर्म रजिस्टर नहीं कराए गए थे। मगर लोगों को लगा कि यह नेताओं के बच्चों की ऐश-ओ-आराम की लाइफस्टाइल दिखाने वाले #NepokKids वीडियो को रोकने की कोशिश है।

और फिर 8 सितंबर को हजारों युवा सड़कों पर उतर आए। यह सिर्फ सोशल मीडिया का मसला नहीं था। यह था दशकों के भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और नेताओं के रवैये के खिलाफ गुस्सा। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट और कई सरकारी इमारतों में आग लगा दी।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। *72 लोग मारे गए*, जिनमें एक 12 साल का बच्चा भी शामिल था। 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए। मगर युवा पीढ़ी पीछे नहीं हटी।

9 सितंबर को प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया। 12 सितंबर को सुशीला कार्की, जो पहले नेपाल की मुख्य न्यायाधीश रह चुकी थीं, को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया। वह नेपाल की इतिहास में पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। और फिर राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने संसद भंग कर दी और 5 मार्च 2026 को चुनाव की घोषणा कर दी।

युवाओं की जीत, लेकिन चुनौतियां अभी बाकी

यह जीत युवाओं की है, खासकर जेन-जेड की – यानी 13 से 28 साल के उन नौजवानों की जिन्होंने सोशल मीडिया से प्रेरणा ली और सड़कों पर उतर आए। उनकी मांगें साफ थीं – भ्रष्टाचार खत्म करो, नौकरियां दो, और नेताओं के बच्चों को विशेष सुविधाएं देना बंद करो।

मगर अब असली इम्तिहान शुरू होने वाला है। क्या यह चुनाव साफ-सुथरे होंगे? क्या पुरानी पार्टियां फिर से सत्ता में आएंगी या कुछ नया होगा? नेपाल में 2008 से अब तक कोई भी सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। 14 सरकारें बनीं और गिरीं।

सुशीला कार्की ने वादा किया है कि वह ज्यादा से ज्यादा छह महीने ही प्रधानमंत्री रहेंगी। उन्होंने युवाओं के साथ मिलकर काम करने का भरोसा दिया है। प्रदर्शनों में मारे गए लोगों के परिवारों को 10 लाख नेपाली रुपये (करीब 6 लाख भारतीय रुपये) मुआवजा देने की घोषणा की गई है।

क्या बदलेगा, क्या नहीं?

नेपाल के 3 करोड़ लोग अब बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। खासकर युवा, जिनकी बेरोजगारी दर 20.8 फीसदी है। हर साल लाखों नेपाली लोग नौकरी की तलाश में दूसरे देशों में जाते हैं – खाड़ी के देशों में, दक्षिण कोरिया में, मलेशिया में।

नेपाल की अर्थव्यवस्था बाहर से आने वाले पैसों (रेमिटेंस) पर निर्भर हो गई है। 2024-25 में 8.39 लाख लोगों को विदेश जाने के लिए श्रम परमिट मिला। यह संख्या बताती है कि देश में रोजगार की कितनी कमी है।

Nepal General Election Date 2026: चुनाव कब? कैसे? कहाँ? पूरी जानकारी
Nepal General Election Date 2026: चुनाव कब? कैसे? कहाँ? पूरी जानकारी

चुनाव में जो भी जीतेगा, उसके सामने बड़ी चुनौतियां होंगी :
– रोजगार के मौके बढ़ाना
– भ्रष्टाचार खत्म करना
– युवाओं को देश में रोकना
– राजनीतिक स्थिरता लाना
– जेन-जेड की आवाज को सुनना

राजनीतिक दलों की तैयारियां

अभी तक यह साफ नहीं है कि कौन-कौन सी पार्टियां चुनाव में उतरेंगी। नेपाल की तीन बड़ी पार्टियां हैं – नेपाली कांग्रेस, सीपीएन (यूएमएल) और सीपीएन (माओवादी केंद्र)। मगर जेन-जेड आंदोलन के बाद इन पुरानी पार्टियों की साख पर सवाल खड़े हो गए हैं।

काठमांडू के मेयर बालेंदु शाह, जो खुद जेन-जेड से ताल्लुक रखते हैं और एक रैपर भी हैं, को युवाओं का बड़ा समर्थन मिल रहा है। सूडान गुरुंग, जो “हमी नेपाल” संगठन के संस्थापक हैं, भी विरोध प्रदर्शनों के प्रमुख चेहरे के तौर पर उभरे हैं।

दिसंबर से PR सूची की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। पार्टियों को अपनी सूचियों में महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अन्य हाशिए के समुदायों के लिए निश्चित कोटा रखना होगा।

पड़ोसी देशों में भी इसी तरह के आंदोलन

नेपाल का यह आंदोलन अकेला नहीं है। पूरे दक्षिण एशिया में युवा पीढ़ी अब सड़कों पर उतर रही है। श्रीलंका में 2022 में “अरागलया” आंदोलन ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।

बांग्लादेश में भी 2024-25 में छात्र आंदोलनों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वहां भी अब अंतरिम सरकार है और चुनाव की तैयारी चल रही है।

यह सब बता रहा है कि इस पीढ़ी का धैर्य खत्म हो चुका है। वे अब सिर्फ वादे नहीं, असली बदलाव चाहते हैं।

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अब क्या होगा ?

अगले कुछ महीने नेपाल के लिए बेहद अहम होंगे। क्या चुनाव आयोग साफ-सुथरे चुनाव करा पाएगा? क्या सुरक्षा बलों पर भरोसा किया जा सकता है, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों में 72 लोगों की जान ली?

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी पार्टियां और विरोध समूह अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। प्रदर्शनों के दौरान चोरी हुए हथियारों का इस्तेमाल हो सकता है। सुरक्षा एक बड़ी चिंता है।

मगर सरकार ने तैयारी शुरू कर दी है। बैलेट बॉक्स, बैलेट पेपर, मतदाता सूची – सब कुछ तैयार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्की ने सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों को चुनाव की तैयारी के लिए निर्देश दे दिए हैं।

राष्ट्रपति पौडेल ने कहा है कि चुनाव समय पर होंगे। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी नेपाल पर नजर रख रहा है। भारत ने सुशीला कार्की की नियुक्ति का स्वागत किया है। चीन अभी चुप है मगर उसने प्रदर्शनों के दौरान शांति की अपील की थी।

आखिरी बात

नेपाल का यह चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं है। यह उस युवा पीढ़ी की उम्मीदों की परीक्षा है जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना सड़कों पर उतरकर बदलाव की मांग की।

72 लोग शहीद हो गए, हजारों घायल हुए। क्या उनकी कुर्बानी रंग लाएगी? क्या 5 मार्च 2026 को नेपाल का इतिहास बदल जाएगा?

अभी तो बस इंतजार है – 20 जनवरी के नामांकन का और फिर 5 मार्च के उस दिन का जब नेपाल की जनता अपना फैसला सुनाएगी। यह फैसला सिर्फ नेपाल के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक संदेश होगा कि युवा अब चुप नहीं रहने वाले।

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