देश का पहला प्राइवेट कमर्शियल रॉकेट ‘विक्रम-एस’ – आम आदमी की नजर से
न्यू इंडिया की नई कहानी : – सोचिए, अगर कोई आपको कहे कि भारत भी अब स्पेस में अमेरिका और रूस की तरह प्राइवेट रॉकेट उड़ा सकता है… कैसा लगेगा? यही हो रहा है! हैदराबाद की एक कंपनी – ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ – देश का पहला प्राइवेट रॉकेट जनवरी 2026 में लॉन्च करने वाली है। ये नाम सुनने में जितना बड़ा लगता है, इसके पीछे की मेहनत उससे भी ज्यादा बड़ी है।
स्पेस की दुनिया में प्राइवेट कंपनियां : –
अब तक अपने देश में स्पेस की सारी बड़ी बातें ISRO ही करता था – वही सैटेलाइट भेजता, वही मिशन लाता। पर अब वक्त बदल गया है। स्काईरूट जैसी कंपनियां भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। इससे स्पेस सेक्टर में ना सिर्फ काम बढ़ेगा, बल्कि प्राइवेट कंपनियों को भी मौका मिलेगा।
क्यों खास है विक्रम-एस ?
विक्रम-एस भारत का पहला प्राइवेट रॉकेट है, जिसका नाम देश के स्पेस प्रोग्राम के जनक, डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस रॉकेट को लॉन्च करने वाली कंपनी के फाउंडर खुद ISRO में काम कर चुके साइंटिस्ट हैं – पवन चांदना और नागा भारत डाका। स्काईरूट ने इसके लिए करीब 850 करोड़ रुपये का फंड जुटाया है, जो इस सेक्टर में एक बड़ी शुरुआत मानी जा रही है।
लागत और समय : –
परिश्रम की असली तस्वीर – स्काईरूट एयरोस्पेस ने अब तक करीब 850 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई है। एक रॉकेट पूरी तरह तैयार करने में लगभग 8 से 9 महीने लगते हैं। लागत लगभग 3 मिलियन डॉलर यानी लगभग 25–26 करोड़ रुपये के करीब होती है। तकनीकी रूप से यह बहुत महंगा और जटिल काम है, लेकिन कंपनी का लक्ष्य है कि यह प्रोजेक्ट लाभकारी साबित हो और भविष्य में स्पेस सेक्टर में भारत की आमदनी बढ़ाए।
लॉन्च कब और कहां ?
खबर है कि जनवरी 2026 में यह रॉकेट अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरेगा। अगर सब कुछ सही रहा, तो यह मिशन भारत की स्पेस इंडस्ट्री के लिए बिलकुल नया पड़ाव होगा। लॉन्च के लिए श्रीहरिकोटा का सतीश धवन स्पेस सेंटर चुना गया है, जहां से ISRO भी अपने रॉकेट लॉन्च करता रहा है।
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विक्रम-एस के पीछे की ताकत : –
इस रॉकेट का पहला सबऑर्बिटल टेस्ट मिशन नवंबर 2022 में हो चुका है, जिसे “मिशन प्रारंभ” नाम दिया गया था। इसमें तीन पे-लोड्स (सैटेलाइट) गए थे – दो भारतीय और एक विदेशी। अब जो लॉन्च होने जा रहा है, वह पूरी तरह कमर्शियल होगा – मतलब सैटेलाइट्स भी प्राइवेट ग्राहकों के होंगे, और भारत इस लिस्ट में अपनी जगह मजबूती से बना लेगा।
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आगे का रोडमैप –
सपना बड़ा है! स्काईरूट की योजना हर तीन महीने में एक रॉकेट लॉन्च करने की है, और 2027 तक यह आंकड़ा हर महीने तक पहुंच सकता है। CEO कहते हैं – एक रॉकेट बनाने में करीब 8–9 महीने लगते हैं और लागत तीन मिलियन डॉलर तक जाती है। लेकिन इसके बदले में मिलने वाला रेवेन्यू (आमदनी) इससे दोगुना होती है। इसके बाद कंपनी का टारगेट साल 2028 तक प्रॉफिट में आना है।
आम आदमी के लिए क्या मायने हैं ?
अब माहौल ऐसा है कि सिर्फ सरकारी तंत्र पर निर्भर रहना जरूरी नहीं होगा। छोटे स्टार्टअप, यूनिवर्सिटी या प्राइवेट कंपनी भी अपना सैटेलाइट सीधे स्पेस में भेज सकेगी। इससे सिर्फ टेक्नोलॉजी ही नहीं, रोजगार और इनोवेशन दोनों का रास्ता खुलेगा। बाद में हो सकता है कि हममें से कोई अपने गांव/शहर से भी अंतरिक्ष में कुछ भेज दे।
देश का नाम, नई ऊंचाई – “स्पेस में भारत के लिए अब कोई सीमा नहीं है”स्काईरूट का ये मिशन सिर्फ एक रॉकेट नहीं, बल्कि एक बड़े सपने की शुरुआत है, जहाँ आज का युवा, प्राइवेट कंपनियां और पूरा देश एक नई दुनिया की ओर बढ़ रहा है। जो कल तक सिर्फ सरकारी दफ्तरों की बात थी, आज हर किसी की कहानी है – आपकी भी, मेरी भी।
