अब युवाओं को भी मिलेगा जिला न्यायधीश बनने का मौका – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सपनों की अदालत में नया दरवाजा

सोचिए, एक आम लड़का है – नाम रख लेते हैं अमित। अमित एलएलबी कर चुका है, उसके सपने बड़े हैं – कभी वकील बनकर अपने गाँव के लोगों की मदद करता है, तो कभी सोचे कि अदालत की कुर्सी पर बैठा जज ही बन जाऊँ। लेकिन असली दुनिया ऐसी सीधी कहां होती! बचपन से अमित ने सुना था कि जिला न्यायधीश (डिस्ट्रिक्ट जज) बनने के दो रास्ते हैं – या तो वकीलों के लिए एक अलग सीधी भर्ती (डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) है, जहां कम से कम 7 साल वकालत करना ज़रूरी है, या फिर जो लोग जूनियर जज (सिविल जज, मजिस्ट्रेट) बन गए, उनको तो अपने प्रमोशन का कई साल इंतजार करना पड़ता है।

लेकिन अब तस्वीर बदल गई है, और इस बदलाव की वजह बना है सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला जिसकी चर्चा हर तरफ है।

नया क्या है सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ?

2025 के अक्टूबर महीने में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले के मुताबिक, अब जो लोग पहले वकील रह चुके हैं और फिर जूनियर जज बने, वो भी सीधा जिला न्यायधीश की पोस्ट के लिए परीक्षा/इंटरव्यू दे सकते हैं – बशर्ते उनके पास कुल मिलाकर 7 साल का लगातार अनुभव (वकालत+जज के रूप में) हो। मतलब, अगर अमित ने 4 साल वकालत की और फिर 3 साल जज के तौर पर काम किया – कुल सात साल, तो वो भी अब जिला जज बनने की कतार में कूद सकता है।

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ जरूरी नियम भी तय किए :

  • हर उम्मीदवार की उम्र कम-से-कम 35 साल होनी चाहिए।
  • अनुभव सात साल का लगातार होना चाहिए, बीच में लंबा ब्रेक हो तो वो मान्य नहीं होगा।
  • आवेदन के समय योग्यता जाँची जाएगी, न कि नियुक्ति के समय।
  • अब राज्यों की सरकारों और हाईकोर्ट्स को ये नियम अपने ज्यूडिशियल सर्विस के नियमों में तीन महीने के भीतर जोड़ने होंगे।
अब युवाओं को भी मिलेगा जिला न्यायधीश बनने का मौका - सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
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आम लोगों के लिए क्यों है ये बड़ा बदलाव ?

पुराना सिस्टम कुछ ऐसा था कि जिन लोगों ने कम उम्र में जुडिशियल सर्विस जॉइन कर ली, उन्हें जिला जज बनने के लिए 15-20 साल लग जाते थे, जबकि सीधे वकीलों को सिर्फ 7 साल बाद मौका मिल जाता था। ऐसे में बहुत से जुडिशियल अफसर खुद को ‘फंसा’ हुआ महसूस करते थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले से सबको बराबरी का मौका दिया है – चाहे वकील हो, चाहे पहले से जज।

इससे चीज़ें ज्यादा मेरिट के आधार पर होंगी – यानी जो वाकई में अच्छा है, उसके लिए रास्ता खुला रहेगा।

अमित जैसे युवाओं के लिए क्या बदलेगा?सोचिए, अमित जैसा नौजवान जिसने अकेले दम पर कानून पढ़ा, गाँव-शहर में केस लड़े, फिर जज बन गया – अब सालों तक अपनी बारी का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। अपने अनुभव और मेहनत से वो फिर जिला जज के एग्जाम में शामिल हो सकता है।

  • इससे देशभर के हज़ारों युवा अफसरों की उम्मीद जगी है।
  • महिलाओं के लिए भी ये सहूलियत बढ़ेगी, क्योंकि कॅरियर प्लानिंग में लचीलापन आएगा।
  • काबिल लोगों को जल्दी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा, जिससे आम जनता को न्याय जल्दी और बेहतर मिलेगा।

 

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सवाल-जवाब जो आम आदमी के मन में होंगे

क्या वकील और जज, दोनों प्रयास कर सकते हैं?
जी हां, अब दोनों का अनुभव मिलाकर भी आवेदन कर सकते हैं – लेकिन लगातार अनुभव जरूरी है।

गाँव के लड़कों-लड़कियों के लिए क्या है फायदा?
यहीं से सबसे बड़ा बदलाव शुरू होता है – अब छोटे शहरों, गाँवों के युवा भी अगर कुछ साल वकालत कर, फिर जज बनें तो जिला जज की कुर्सी उनके लिए ज्यादा दूर नहीं रहेगी।

क्या ये फैसला तुरंत लागू हो गया?
अदालत ने सभी राज्यों से कहा है कि वो अगले तीन महीनों में अपने नियम में ये बदलाव जोड़ें और नई भर्ती इसी के अनुसार हो

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