तिगरी गंगा मेला: त्रेता युग से चलती आ रही आस्था और भक्ति का पर्व

गंगा नदी के तट पर महाआरती के साथ शुरू हुआ ऐतिहासिक तिगरी मेला

गंगा की पावन छांव में मेला शुरू : –

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के तिगरी गांव में गंगा नदी के किनारे लगने वाला तिगरी गंगा मेला 2025 में भव्य महाआरती और दुग्धाभिषेक के साथ शुरू हुआ। सूरज के ढलते ही ‘हर-हर गंगे’ के जयकारों से गंगा तट गुंज गया, जिससे हर श्रद्धालु का मन भक्तिमय हो उठा। मंदिरों की तरह काशी की तर्ज पर गंगा आरती हुई और मंत्रों की गूंज से मेला स्थल दिव्य हो गया। प्रशासन, संत और आम श्रद्धालु मिलकर मिली-जुली भक्ति और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद उठा रहे हैं।

मेला लगने का कारण और ऐतिहासिक महत्व : – 

तिगरी गंगा मेले का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है। मान्यता है कि श्रवण कुमार ने अपने नेत्रहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जाते हुए गंगा तट पर स्नान किया था। तब गढ़मुक्तेश्वर के नक्का कुएं के पास वह रुके, जहां श्रद्धालुओं की भीड़ लग गई और यहीं से तिगरी मेला शुरू हुआ। इसके साथ ही महाभारत के पांडवों ने भी अपने सगे संबंधियों की आत्मा शांति के लिए यहां गंगा में दीपदान किया था, जिससे मेले का धार्मिक महत्व और बढ़ गया।

माघ पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। यह मेला मृत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान का एक बड़ा आयोजन भी है, जहां श्रद्धालु गंगा में जलते दीपक छोड़ते हैं। ये परंपराएं इस मेले को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी देती हैं।

श्रद्धालुओं की भव्य सहभागिता और प्रबंध : –

मेला आज कई लाख श्रद्धालुओं के लिए विकास और आध्यात्म का केंद्र बन चुका है। इस साल लगभग 35 से 40 लाख श्रद्धालु आने का अनुमान है। प्रशासन ने पूरे मेले को 22 सेक्टरों और 6 जोनों में बांटकर सुविधाएं दी हैं, जिसमें स्वच्छ पेयजल, चिकित्सा सुविधा, सुरक्षा और आरामदायक आवास शामिल हैं। श्रद्धालु कई दिन तक तंबू लगाकर रहते हैं, और अपनी आस्था का उत्सव मनाते हैं। इस मेला में श्रद्धालुओं के लिए पहली बार दस बीघे से अधिक रकबे में टेंट सिटी बसाई गई है, जिसमें 100 से अधिक शिविर बनाए गए हैं। ये शिविर तीन श्रेणियों में विभाजित हैं, जहां श्रद्धालु आराम से रह सकते हैं। मेले का आयोजन इतने बड़े स्तर पर किया गया है कि हर श्रद्धालु को सुविधाजनक और सुरक्षित वातावरण मिले। श्रद्धालुओं के लिए पेयजल, आवास, स्वास्थ्य और सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई है। मेले का यह स्वरूप एक तरह से एक छोटी धार्मिक नगरी जैसा बन चुका है, जहां साधु-संत भी अपने डेरों के साथ तपस्या करते नजर आते हैं।

तिगरी गंगा मेला: त्रेता युग से चलती आ रही आस्था और भक्ति का पर्व
तिगरी गंगा मेला: त्रेता युग से चलती आ रही आस्था और भक्ति का पर्व(image source – hindustan )

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लोक संस्कृति और साधु-संतों की उपस्थिति : –

मेला धार्मिक अनुष्ठान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और साधु-संतों के तपस्या का केंद्र भी है। जूना अखाड़ा, पंचदशानन आह्वान अखाड़ा, नागा संतों की भीड़ यहां होती है, जो नियमित हवन-पूजन, जप-तप में व्यस्त रहते हैं। स्थानीय बच्चों और कलाकारों के लोकनृत्य, रामलीला और संगीत से मेला जीवंत हो जाता है। गंगा के किनारे साधु-संतों का एक बड़ा जमावड़ा रहता है, जो तपस्या, जप-तप और कीर्तन में दिनभर लीन रहते हैं। यहाँ जूना अखाड़ा, पंचदशानन आह्वान अखाड़ा, नागा संतों का भी विशेष आस्था का स्थान है। ये संत अपने अद्भुत रुपों में मेले की शोभा बढ़ाते हैं और भक्तों के लिए हवन में आहुति देते हुए धार्मिक ज्ञान का प्रचार करते हैं। उनके साथ श्रद्धालु पुण्य कमाने के लिए स्नान और दान करते हैं, जो इस मेले की धार्मिक गरिमा को और बढ़ाते हैं।

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प्रशासन की कड़ी तैयारियाँ : –

भीड़ और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने मेले में व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए हैं। पुलिस फोर्स की तैनाती, भीड़ नियंत्रण के उपाय, मेडिकल कैंप, और स्वच्छता पर विशेष ध्यान है। विधायक, मंत्री और जिला प्रशासन के अधिकारी खुद मेला स्थल पर व्यवस्था देख रहे हैं ताकि श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो

 

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