नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद वेनेजुएला का कड़ा कदम: नोर्वे में एम्बेसी बंद

वेनेजुएला ने हाल ही में नोर्वे की राजधानी ओस्लो में अपनी एम्बेसी बंद करने का फैसला किया है। यह कदम ठीक वेनेजुएला की एक प्रमुख विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के कुछ ही दिनों बाद उठाया गया। इस खबर ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचाई है और आम लोगों की जुबान पर चर्चा का विषय बना है।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि वेनेजुएला ने अपनी एम्बेसी बंद करने जैसा बड़ा कदम उठाया ?

दरअसल, मारिया कोरिना माचाडो वेनेजुएला की विपक्षी नेता हैं, जो देश में लोकतंत्र और जनता के अधिकारों के लिए बहुत लड़ रही हैं। उनकी हिम्मत और संघर्ष को इस बार नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नोबेल पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जो अपने खून-पसीने से दुनिया को बेहतर बनाने की दिशा में काम करते हैं।लेकिन वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो, जिन पर कई देशों ने शासन को अवैध बता रखा है, उनका माचाडो के प्रति रुख बिल्कुल उल्टा है। उन्होंने माचाडो को “देमोनिक विच” यानी शैतान जैसी स्त्री कह कर उनका विरोध किया। मादुरो के लिए यह सम्मान गले नहीं उतर सका। इसी वजह से उन्होंने अपने देश की राजनीतिक रणनीति के हिस्से के तौर पर नोर्वे में अपनी एम्बेसी बंद करने का फैसला लिया है।

क्या कहा नोर्वे ने ?

नोर्वे के विदेश मंत्रालय ने इस निर्णय पर अफ़सोस जताया है, लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नोबेल पुरस्कार समिति पूरी तरह से स्वतंत्र है और सरकार से अलग काम करती है। वेनेजुएला की यह कार्रवाई हालांकि नोर्वे और वेनेजुएला के बीच कूटनीतिक बातचीत को प्रभावित कर सकती है। नोर्वे ने कहा कि वे अभी भी वेनेजुएला के साथ संवाद जारी रखना चाहते हैं, भले ही उनके विचार अलग-अलग हों।

माचाडो का संघर्ष और नोबेल पुरस्कार : –

मारिया कोरिना माचाडो ने पिछले कई सालों से मादुरो की सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें पिछले साल चुनाव लड़ने से भी रोका गया। माचाडो को सुरक्षा कारणों से लंबे समय तक छिप कर रहना पड़ा। नोबेल पुरस्कार मिलने पर उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार केवल उनकी नहीं, बल्कि वेनेजुएला की पूरी जनता की जीत है। यह पुरस्कार उनके आंदोलन के लिए ‘एक नई ऊर्जा, आशा और ताकत’ लेकर आया है।

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नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद वेनेजुएला का कड़ा कदम: नोर्वे में एम्बेसी बंद
नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद वेनेजुएला का कड़ा कदम: नोर्वे में एम्बेसी बंद(image source – the review of religion)

वेनेजुएला का कूटनीतिक बदलाव : –

वेनेजुएला ने सिर्फ नोर्वे में ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी अपनी एम्बेसी बंद करने की घोषणा की है। इसके बजाय वे ज़िम्बाब्वे और बुर्किना फासो में नई दूतावासों को खोलने की योजना बना रहे हैं। वेनेजुएला की सरकार ने इसे अपनी “भूराजनीतिक नीति” और “अश्वेत साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष” का हिस्सा बताया है।

आम आदमी के लिए मतलब दुख की बात है कि जिस देश के लोगों की आवाज़ दुनिया से जुड़ने के लिए एम्बेसी बंद हो रही है, वहां लोकतंत्र की लड़ाई इतनी कठिन हो गई है। एक आम इंसान के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो सकता है कि एक नेता को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उसकी सरकार ऐसी कठोर प्रतिक्रिया क्यों देती है। इसका जवाब है राजनीतिक तनाव और सत्ता की लड़ाई। लेकिन यह भी साफ़ है कि लोगों की उम्मीदें, उनकी हिम्मत, और उनकी आज़ादी की चाह खत्म नहीं हुई है।

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वेनेजुएला ने नोर्वे की राजधानी ओस्लो में अपनी एम्बेसी बंद कर दी है, जो सीधे तौर पर विपक्षी नेता मारिया कोरिना माचाडो को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने पर नाराजगी जताने जैसा कदम है। नोर्वे ने इस कार्रवाई को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा है कि नोबेल पुरस्कार सरकार से स्वतंत्र है।

माचाडो का यह पुरस्कार वेनेजुएला के लोकतंत्र और मानवीय अधिकारों की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। वहीं, वेनेजुएला की सरकार नए कूटनीतिक संबंध बनाने की रणनीति में जुटी है। इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि राजनीति का रंग कितना तीखा और जटिल हो सकता है, लेकिन जनता की आवाज़ हमेशा बनी रहती है।

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