भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाने की तैयारी कर ली है। ISRO के अध्यक्ष वी. नारायणन ने घोषणा की है कि अब ISRO अपने सबसे सफल रॉकेट, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) के विकास का 50 प्रतिशत हिस्सा भारतीय उद्योग समूह को सौंपना चाहता है। इस निर्णय के पीछे ISRO की स्वदेशी तकनीक को मजबूत करना, उद्योग जगत को अधिक से अधिक मौका देना और भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है। आइए इसे आम आदमी की भाषा में समझते हैं ताकि हर कोई इसे बखूबी समझ सके।
PSLV क्या है और क्यों खास है ? : –
PSLV या पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, ISRO का एक ऐसा रॉकेट है जिससे भारत ने कई महत्वपूर्ण उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं। ये रॉकेट इतना भरोसेमंद और सस्ता है कि इसे “भारत का वर्कहॉर्स” भी कहा जाता है। PSLV ने भारत को विश्व के अंतरिक्ष मानचित्र पर मजबूती से स्थापित किया है और इसका योगदान भारत के उपग्रह संचार, मौसम विज्ञान, टीवी ब्रॉडकास्टिंग और रक्षा में अद्वितीय रहा है।
वी. नारायणन का बड़ा एलान : –
ISRO के प्रमुख वी. नारायणन ने ‘इंडिया मैन्युफैक्चरिंग शो 2025’ में बताया कि PSLV के विकास का आधा हिस्सा अब सीधे भारतीय उद्योग कंसोर्टियम को दे दिया जाएगा। इसका मतलब है कि अब ISRO खुद PSLV के सिर्फ आधे हिस्से पर काम करेगा और बाकी का काम पूरी तरह से भारतीय कंपनियों और उद्योग समूह द्वारा किया जाएगा। खास बात यह है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसे दिग्गज कंपनियों की अगुवाई में भारतीय उद्यम पहले ही PSLV का पहला रॉकेट बना चुके हैं, जिसे फरवरी 2026 तक लॉन्च किया जाएगा।
इंडस्ट्री की भूमिका कितनी मजबूत है ? : –
वी. नारायणन के अनुसार, फिलहाल ISRO के मिशनों में लगभग 450 भारतीय उद्योग सक्रिय हैं, जो ISRO के 80 से 85 प्रतिशत सिस्टम का उत्पादन करते हैं। इतना ही नहीं, CMS-03 मिशन जैसे सबसे भारी संचार उपग्रह में भी 80 प्रतिशत योगदान भारतीय उद्योगों का था। ये तथ्य साफ करते हैं कि भारतीय उद्योग ISRO के लिए केवल सहयोगी नहीं, बल्कि अहम हिस्सा बन चुके हैं।
इस कदम का महत्व : –
इसरो का यह कदम “आत्मनिर्भर भारत” अभियान के अनुकूल है, जहां तकनीकी विकास और आर्थिक सफलता के लिए देश के उद्योगों को बढ़ावा देना जरूरी है। PSLV के विकास में उद्योगों की भागीदारी बढ़ने से न केवल भारत की तकनीकी क्षमता बढ़ेगी, बल्कि हजारों नई नौकरियां भी बनेंगी। इसके साथ ही, ISRO का लक्ष्य है कि वह 2025 तक सालाना 50 रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य प्राप्त करे, जो कि घरेलू कंपनियों की मदद के बिना संभव नहीं होगा।
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इसरो के सपनों की उड़ान और स्टार्टअप का रोल : –
भारत आज 56 से अधिक उपग्रहों का सफल संचालन कर रहा है और आने वाले वर्षों में ये संख्या तीन से चार गुना बढ़ने का अनुमान है। साथ ही देश में स्पेस टेक्नोलॉजी से जुड़ी 330 से ज्यादा स्टार्टअप भी प्रभावी हो चुकी हैं, जो इसरो के लिए नई तकनीक और नवाचार ले कर आ रही हैं। ISRO इन्हीं स्टार्टअप्स और उद्योगों को मेंटरिंग और समर्थन प्रदान कर रहा है, जिससे पूरे अंतरिक्ष क्षेत्र को एक नई गति मिल रही है।
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आम आदमी के लिए क्या फर्क पड़ेगा ? : –
हालांकि यह चर्चा तकनीकी लगती है, इसका फायदा आम आदमी तक भी पहुंचेगा। बेहतर तकनीक और स्वदेशी उत्पादन से उपग्रह सेवाएं जैसे इंटरनेट, मौसम की सटीक भविष्यवाणी, प्राकृतिक आपदाओं की समय पर सूचना, और संचार व्यवस्था और मजबूत होगी। इसके साथ ही भारत का स्पेस सेक्टर वैश्विक स्तर पर और प्रतिस्पर्धी बनेगा, जिससे देश की अंतरराष्ट्रीय छवि भी सुधरेगी।
अंत में : –
वी. नारायणन का यह फैसला भारत के स्पेस टेक्नोलॉजी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण बड़ा कदम है। इंडस्ट्री को ज्यादा अवसर मिलने से भारतीय स्पेस उद्योग और मजबूत होगा और ISRO की तकनीकी प्रगति में तेजी आएगी। यह बदलाव न सिर्फ ISRO के प्रोजेक्ट्स को गति देगा, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि हम तकनीक के क्षेत्र में विश्व के शीर्ष में जा रहे हैं।
