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कोयला खदान से लेकर नेचर ट्रेल तक: झारखंड का नया ईको-खनन पर्यटन

कोयला खदान से लेकर नेचर ट्रेल तक: झारखंड का नया ईको-खनन पर्यटन

कोयला खदान से लेकर नेचर ट्रेल तक: झारखंड का नया ईको-खनन पर्यटन ( image source - navbharat times )

झारखंड ने देश में पहली बार खनन पर्यटन की शुरुआत कर एक नई राह खोली है, जो न सिर्फ पर्यटन के क्षेत्र में बल्कि आर्थिक और शैक्षिक स्तर पर भी राज्य को आगे ले जाने वाली है। प्रदेश की प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ अब आप कोयले की खदानों का भी रोमांचक अनुभव ले सकते हैं। इसे लेकर राज्य सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं और साथ ही इको टूरिज्म यानी पर्यावरण-मैत्री पर्यटन पर भी खास फोकस किया जा रहा है जिससे झारखंड पर्यटन के जादू को और बड़ा बना रहा है।

खनन पर्यटन की नई पहल : –

झारखंड, जो भारत के लगभग 40% खनिज संसाधन का भंडार है, ने हाल ही में देश की पहली खनन पर्यटन परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत पर्यटक सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) के सहयोग से रांची से पतरातू होते हुए उरीमारी ओपन कास्ट खदान तक के सफर पर जा सकते हैं। इस यात्रा में आप न सिर्फ स्थानीय प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेंगे, बल्कि खनन की प्रक्रिया को करीब से देख सकते हैं – जैसे कि कोयला कैसे निकाला जाता है, लोड किया जाता है और देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है। यह अनुभव एक खास तरह की शिक्षा और रोमांच दोनों प्रदान करता है।

हरियाली और इको टूरिज्म पर जोर : –

खनन पर्यटन के साथ-साथ झारखंड ने अपने पर्यटन नीति-2021 के तहत ईको टूरिज्म यानी पर्यावरणीय पर्यटन को भी खूब बढ़ावा दिया है। प्रकृति प्रेमी यहां के नेतरहाट, चांडिल डैम, बेतला नेशनल पार्क जैसे स्थानों में जा सकते हैं, जहां जंगल, झरने, पहाड़ियां और वन्य जीवन आपका इंतजार करते हैं। राज्य सरकार ने वन प्रबंधन समितियों को भी पर्यटन के विकास में साझेदार बनाया है ताकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो सके। दुमका के मसानजोर बांध के पास इको-फ्रेंडली कॉटेज भी बनाए गए हैं, जो सच्चे पर्यावरण प्रेमियों के लिए आरामदेह ठहराव हैं।

कोयला खदान से लेकर नेचर ट्रेल तक: झारखंड का नया ईको-खनन पर्यटन (image source – ndtv.in )

पर्यटन से रोजगार और विकास : –

यह नई खनन पर्यटन परियोजना सिर्फ पर्यटन को नहीं बढ़ा रही है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही है। जैसे-जैसे पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे स्थानीय व्यवसायों और सेवा प्रदाताओं को भी फायदा होगा। राज्य में सड़क, रेल और वायु मार्ग से पर्यटन स्थलों को बेहतर जोड़ा जा रहा है ताकि आने-जाने में परेशानी न हो।

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सोचिए कि आप रांची की सुबह शुरू करते हैं, फिर चलते हैं पतरातू की पहाड़ियों की ओर जहां आप प्राकृतिक झरनों और हरे-भरे जंगलों में खो जाते हैं। वहां के वाटर पार्क में थोड़ा आराम करते हैं। फिर, अचानक आप एक बड़े खदान के पास पहुंचते हैं, जहां कोयले की ऊंची दीवारें और महँगे मशीनरी देखकर हैरान रह जाते हैं। हेलमेट, रिफ्लेक्टिव जैकेट पहने गाइड के साथ आप सीखते हैं कि बिजली के लिए कोयला कैसे जमीन से निकाला जाता है। यह सफर न केवल मनोरंजक है, बल्कि आपको पर्यावरण संरक्षण और खनन के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को भी समझाता है। फिर वापस लौटते हुए आप महसूस करते हैं कि झारखंड का यह अनूठा पर्यटन मॉडल भविष्य में और भी रंग लाएगा।

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इस विचार के साथ लिखा गया है कि आप भी झारखंड की धरती पर फैले प्राकृतिक और खनिज संसाधनों के संगम को देख सकें, समझ सकें और इसका आनंद उठा सकें। पर्यटन के इस नए फेस ने न केवल पर्यटकों को नई जगह दिखाने का काम किया है बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी नयी उम्मीदें जगाई हैं। झारखंड की यह पहल पर्यावरण के साथ संतुलित विकास का उदाहरण है, जहां प्रकृति और उद्योग दोनों साथ-साथ चलते हैं।

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