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कुर्मी समाज का रेल रोको आंदोलन – वंदे भारत समेत दर्जनों ट्रेनें हुई लेट और कई ट्रेनें हुई रद्द!

झारखंड में कुर्मी समाज द्वारा रेल रोको आंदोलन हाल ही में अत्यधिक चर्चा में रहा है। यह आंदोलन उनकी वर्षों पुरानी मांग – अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा – के समर्थन में आयोजित किया गया, जिसमें हजारों कुर्मी समाज के लोगों ने रेलवे ट्रैक और प्रमुख सड़कों को जाम किया, जिससे पूरे झारखंड के साथ-साथ बंगाल और ओड़िशा के कई हिस्सों में रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

कुर्मी समाज झारखंड, बंगाल और ओड़िशा के अनेक जिलों के साथ-साथ समूचे छोटानागपुर पठार क्षेत्र में निवास करता है। आंदोलनकारियों का दावा है कि उनकी जनसंख्या झारखंड में लगभग 65 लाख, बंगाल में 40 लाख और ओड़िशा में 30 लाख है। कुर्मी नेता बताते हैं कि 1931 की जनगणना में इस समुदाय का नाम एसटी सूची में था, लेकिन 1950 में बिना किसी कानूनी आधार के उन्हें इस सूची से हटा दिया गया। समुदाय का कहना है कि उनकी पूजा-पद्धति, कला, संस्कृति आदिवासियों जैसी है, लेकिन उन्हें जानबूझकर ओबीसी में डाला गया।

रेल जाम और प्रशासनिक कार्रवाई

आंदोलन 20 सितंबर 2025 से अनिश्चितकालीन रूप में शुरू हुआ। धनबाद, रांची, बोकारो, गिरिडीह, जामताड़ा समेत करीब 40 रेलवे स्टेशनों पर रेल लाइन पर बैठकर समाज के लोगों ने यातायात रोक दिया, जिससे सैकड़ों यात्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कई प्रमुख ट्रेनों को रद्द और कुछ को परिवर्तित मार्ग से चलाना पड़ा। रांची-वाराणसी वंदे भारत, टाटा-पटना वंदे भारत, टाटानगर-बरकाकाना मेमू जैसी ट्रेनों की सेवाएं पूरी तरह बाधित हो गईं।

देश में अब हर 30 मिनट में एक नया मिलियनेयर परिवार शामिल हो रहा है।

प्रभावित इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई और 500 से अधिक आरपीएफ जवानों की तैनाती की गई। प्रशासन ने यात्रियों को वैकल्पिक मार्गों की सलाह दी। कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों के नेताओं को हिरासत में लिया गया तथा भारी पुलिस बल की तैनाती और सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन इत्यादि का उपयोग किया गया ताकि सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

आंदोलन की मांगें

  1. कुर्मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मिले।
  2. कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।
  3. 1950 की एसटी सूची तैयार करते समय हटाए गए नामों की पुनर्समीक्षा हो।
  4. कुर्मी समाज के नेता बताते हैं कि बंगाल और अन्य जगहों पर वैसी ही समुदायों को एसटी दर्जा दिया गया है, किंतु झारखंड के कुर्मी इससे वंचित हैं।

सामाजिक और राजनीतिक समर्थन

इस आंदोलन को कई राजनीतिक दलों और पूर्व सांसदों ने समर्थन दिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है, जिससे यह मुद्दा और अधिक चर्चा में आ गया है।

यात्रियों की स्थिति

यात्रियों को आंदोलन के कारण खासा परेशानी उठानी पड़ी। कई बीमार यात्रियों, बुजुर्गों और दूर-दराज के यात्रियों को रेलवे स्टेशन पर घंटों तक फंसा रहना पड़ा। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ऐसे आंदोलन में आम यात्रियों को असुविधा देना उचित नहीं, साथ ही कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिये सख्ती जरूरी है।

 

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