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झारखंड में अपराध की सच्चाई : NCRB के ताज़ा आंकड़ों की पूरी कहानी

झारखंड में अपराध की सच्चाई : NCRB के ताज़ा आंकड़ों की पूरी कहानी

झारखंड में अपराध की सच्चाई : NCRB के ताज़ा आंकड़ों की पूरी कहानी(image source - facebook)

झारखंड के लोगों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को समझने के लिए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का डेटा एक आईना है। हर साल आने वाले इस रिपोर्ट में एक तरफ अपराधों के आंकड़े होते हैं, तो दूसरी तरफ उन घटनाओं के पीछे छुपी सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ भी।

झारखंड में हत्या की भयावह तस्वीर : – NCRB की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में हत्या का दर देश में दूसरे नंबर पर है। प्रति लाख आबादी इस राज्य में 3.7 हत्या की वारदातें होती हैं, जो मणिपुर के बाद दूसरी सबसे अधिक है। अकेले 2023 में राज्य में 1,463 हत्या के मामले दर्ज हुए।

हत्या के पीछे कई कारण हैंराजनीतिक कारणों से 17 मामले दर्ज़ हुए, जमीन विवाद, पारिवारिक झगड़े, दहेज के विवाद, और व्यक्तिगत दुश्मनी प्रमुख वजहें हैं।ये आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में हालात गंभीर हैं, खासकर 18 से 30 वर्ष के बीच के युवाओं में हत्या की संख्या सबसे अधिक देखी गई। इनमें ज्यादातर पुरुष पीड़ित हैं, लेकिन महिलाओं पर भी अपराध कम नहीं हुए हैं।

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अपराधों का बढ़ता रंगरूट : – हाल के सालों में झारखंड में दहेज हत्या, घरेलू हिंसा और महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या भी चिंता का विषय बनी हुई है। 2023 में दहेज उत्पीड़न के तहत 1,487 मामले दर्ज हुए, जिसमें 1,567 महिलाएं पीड़ित थीं। दहेज हत्या के मामले में झारखंड देश में सबसे आगे है, जहां 218 मामले दर्ज हैं। घरेलू हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं और झारखंड में इसे गंभीरता से लिया जा रहा है।इसके अलावा, बच्चों के खिलाफ अपराधों में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। 2022 में 1,917 ऐसे मामले दर्ज हुए, जबकि 2020 में यह संख्या 1,795 थी। अपहरण के भी 1,899 मामले सामने आए हैं, जिनमें से कुछ रंगदारी के लिए भी हैं।

अपराध का कुल आंकड़ा और न्याय व्यवस्था : – रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में झारखंड में कुल 50,187 आपराधिक मामले दर्ज हुए। इसमें हत्या, दुष्कर्म, चोरी, अपहरण, घरेलू हिंसा जैसी तमाम गंभीर वारदातें शामिल हैं। हालांकि इसके साथ ये भी देखा गया कि पुलिस ने 58 प्रतिशत मामलों में चार्जशीट दायर की है और 4,172 मामलों का निपटारा किया गया है। ट्रायल कोर्ट में लगभग 30,000 मामले लंबित हैं, जहां न्याय का इंतजार लोग बड़ी बेचैनी से कर रहे हैं।सजा मिलने की दर मात्र 29.4 प्रतिशत है, जो बताती है कि न्याय प्रक्रिया अभी भी काफी धीरे चल रही है, और अपराधियों को मजबूती से रोकने में दिक्कतें हैं।

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सामाजिक और सुरक्षा चुनौतियाँ : – झारखंड में माओवादी हिंसा और अवैध खनन जैसे मामले भी अपराध की स्थिति को जटिल बनाते हैं। ग्रामीण इलाकों में पुलिस की कम मौजूदगी के कारण लोगों को अक्सर न्याय मिलने में दिक्कतें होती हैं। इसमें सामाजिक स्तर पर जागरूकता की कमी, गरीब और कमजोर वर्गों के लिए सुरक्षा की सुविधा का अभाव, और राजनीतिक दबाव से निपटना भी शामिल है।आम आदमी की समझ और सोचजब झारखंड के आम लोग इन आंकड़ों को देखते हैं, तो दिल को लगता है कि यह सिर्फ संख्याएं नहीं, बल्कि उनकी खुद की जिंदगी की कहानी हैं। सड़क पर, घर पर, बाजार में हर जगह एक डर सा बैठ गया है। युवा काम की तलाश में बाहर निकलते हैं, उनका सामना हिंसा और अपराध से होता है। महिलाओं और बच्चों को भी सुरक्षा नहीं मिल पा रही। अगर ये स्थिति नहीं बदली, तो झारखंड के विकास की उम्मीदें अधूरी रह जाएंगी।लेकिन साथ ही ये डेटा हमें सचेत करने और सुधार करने का मौका भी देता है। पुलिस के बेहतर प्रशिक्षण, सामाजिक जागरूकता, और न्याय तंत्र के सशक्त होने से हम इनमें सुधार ला सकते हैं।

NCRB का डेटा ये बताता है कि झारखंड को अपने सुरक्षा नेटवर्क को मजबूत करना होगा। प्रशासन, पुलिस और समाज को मिलकर काम करना होगा ताकि अपराध पर काबू पाया जा सके। बेहतर कानून व्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय पर काम किया जाना बेहद जरूरी है, ताकि अपराधियों को मौका न मिले और लोगों की जिंदगी सुरक्षित रह सके।

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