अब आप सोचिए, अगर कोई कहे कि “जज का एक साल का काम, वकील के पांच साल के काम के बराबर होता है”, तो पहली बार सुनकर थोड़ा अजीब लगता है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यही बात कही है — और वो भी संविधान की व्याख्या करते हुए, पूरे देश की न्यायिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर।
अब बात करते हैं उस फैसले की जिसने ये चर्चा शुरू की। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि जज के रूप में एक साल का कार्यकाल, वकील के रूप में पांच साल के अनुभव के बराबर माना जा सकता है। ये बात अनुच्छेद 233 की व्याख्या करते हुए कही गई, जो जिला जज की नियुक्ति से जुड़ा है।
इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई व्यक्ति पहले से जज के पद पर काम कर रहा है, तो उसका एक साल का अनुभव उतना ही भारी माना जाएगा जितना कि किसी वकील का पांच साल का कोर्ट में प्रैक्टिस करना। अब ये बात सिर्फ तुलना नहीं है, बल्कि न्यायिक भर्ती की प्रक्रिया में भी असर डालती है।
जरा सोचिए, एक वकील को जिला जज बनने के लिए कम से कम सात साल का अनुभव चाहिए होता है। लेकिन अगर कोई पहले से सिविल जज या मजिस्ट्रेट के तौर पर काम कर रहा है, तो उसका एक साल का अनुभव पांच साल के बराबर गिना जाएगा। यानी अगर उसने दो साल काम किया है, तो वो दस साल के वकील के बराबर हो गया।
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अब सवाल उठता है — ऐसा क्यों ?
इसका जवाब है “कार्यभार”। जज का काम सिर्फ फैसले सुनाना नहीं होता, बल्कि कोर्ट की कार्यवाही को संभालना, समय पर केस निपटाना, और कानून की व्याख्या करना भी होता है। एक जज रोज़ाना दर्जनों केस देखता है, जबकि एक वकील एक दिन में दो-चार केस ही लड़ता है। जज को तटस्थ रहकर फैसला लेना होता है, जबकि वकील अपने क्लाइंट के पक्ष में लड़ता है।
इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जज का अनुभव ज्यादा गहरा और व्यापक होता है। और यही वजह है कि एक साल का जज का कार्यकाल, पांच साल की वकालत के बराबर माना गया।
अब ये बात आम आदमी के लिए क्या मायने रखती है ?
देखिए, जब हम कोर्ट जाते हैं, तो हमें उम्मीद होती है कि जज सही फैसला देंगे। अगर जज के पास अनुभव ज्यादा होगा, तो फैसले भी मजबूत होंगे। और अगर ऐसे जजों को जिला जज बनने का मौका मिलेगा, तो न्याय व्यवस्था और बेहतर होगी। इस फैसले से उन जजों को भी राहत मिली है जो पहले वकील थे और अब सेवा में हैं, लेकिन उन्हें जिला जज बनने के लिए बार के अनुभव की शर्तों की वजह से रोका जा रहा था। अब उनके सेवा अनुभव को भी बराबरी का दर्जा मिलेगा।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि कानून की दुनिया में हर शब्द का मतलब होता है। और जब सुप्रीम कोर्ट खुद कहे कि “एक साल का जज, पांच साल के वकील के बराबर है”, तो हमें समझना चाहिए कि ये सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि न्याय की गहराई को समझने की कोशिश है।
 
		
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