हमारे समाज में शादी को सिर्फ एक रस्म नहीं माना जाता—ये एक नई ज़िंदगी की शुरुआत होती है। खासकर हिंदू परंपरा में तो शादी के साथ बहुत कुछ बदलता है। लड़की का नाम बदलता है, घर बदलता है, और अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि गोत्र भी बदलता है।
अब आप सोच रहे होंगे—गोत्र क्या होता है और इससे फर्क क्या पड़ता है ?
तो चलिए, पहले थोड़ा समझते हैं। गोत्र मतलब वंश या कुल। हिंदू धर्म में माना जाता है कि हर व्यक्ति किसी ऋषि के वंश से जुड़ा होता है। शादी के वक्त लड़की का गोत्र मायके का होता है, लेकिन जैसे ही शादी होती है, वो पति के गोत्र में शामिल हो जाती है। यही परंपरा सदियों से चली आ रही है।
लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक मामला आया, जिसमें इस बात पर बहस हुई कि क्या शादी के बाद महिला का गोत्र बदलता है या नहीं। मामला था हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(b) को लेकर। इसमें कहा गया है कि अगर किसी हिंदू महिला की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है और उसके पति या संतान नहीं हैं, तो उसकी संपत्ति पति के वारिसों को मिलेगी—not मायके वालों को।

कुछ लोगों ने इस प्रावधान को चुनौती दी और कहा कि ये महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा—हिंदू समाज में शादी के बाद महिला का गोत्र बदलता है, और उसकी जिम्मेदारी पति और उसके परिवार की होती है।
जज साहिबा ने कहा, “हिंदू समाज में कन्यादान की परंपरा है। विवाह के समय स्त्री का गोत्र बदलता है, नाम बदलता है और उसकी ज़िम्मेदारी पति व उसके परिवार की होती है।” उन्होंने ये भी कहा कि अगर महिला की संतान नहीं है, तो वो वसीयत बना सकती है, लेकिन अगर वसीयत नहीं है, तो संपत्ति ससुराल वालों को ही मिलेगी।
अब सोचिए, ये फैसला सिर्फ कानून की बात नहीं है—ये उस सोच को भी दिखाता है जो हमारे समाज में गहराई से जुड़ी है। शादी के बाद महिला का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। और कोर्ट ने इस बदलाव को कानूनी रूप से भी मान्यता दी है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इस कानून को “मनमाना” बताया और कहा कि ये महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि कानून को समाज की संरचना के हिसाब से देखना होगा।
ये भी पढ़े : – जज के रूप में एक साल का कार्यकाल, वकील के रूप में पांच साल के अनुभव के बराबर माना जा सकता है
इस फैसले का असर क्या होगा ?
अब अगर किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत के होती है और उसका पति या बच्चे नहीं हैं, तो मायके वाले संपत्ति के हकदार नहीं होंगे। ये फैसला कई मामलों में दिशा तय करेगा, खासकर संपत्ति विवादों में।
ये कहानी बताती है कि शादी सिर्फ रिश्तों का नहीं, कानून का भी मामला है। और सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा, वो हिंदू परंपरा की गहराई को समझकर कहा। अब ये हम पर है कि हम इस बदलाव को कैसे समझें—परंपरा के तौर पर या अधिकार के नजरिए से।
