देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग जगत में एक बड़ी खबर सामने आई है जिसमें सरकार ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ इंडिया को मिलाकर एक नया बैंक बनाने का प्लान बनाया है। अगर यह मर्जर यानी विलय हो जाता है, तो यह देश का SBI के बाद दूसरा सबसे बड़ा पीएसयू बैंक बन जाएगा। ये खबर सभी आम नौकरशाहों के लिए, बैंकिंग जगत में काम करने वालों के लिए और आम जनता के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे बैंकिंग सेवाएं और व्यवस्था दोनों में बड़े बदलाव आने वाले हैं।
कहानी की शुरुआत होती है इस बात से कि सरकार पिछले कुछ वर्षों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत और ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए कदम उठा रही है। पिछले कुछ सालों में छोटे और मझोले बैंकों के विलय का काम हो चुका है और अब बड़ी बैंकों को भी एक साथ लाकर एक मजबूत बैंक बनने की योजना है। इस रणनीति के तहत यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ इंडिया को मिलाकर एक नया बैंक बनाने की तैयारी चल रही है। इस नए बैंक के पास कुल लगभग 25.67 लाख करोड़ रुपये के एसेट होंगे। तुलना के लिए, ICICI बैंक के पास लगभग 26.42 लाख करोड़ रुपये के एसेट हैं।
यह मर्जर न सिर्फ आकार में बड़ा बैंक बनाएगा, बल्कि बैंकिंग क्षेत्र में कार्यक्षमता, पूंजी और ऋण क्षमता को भी और बेहतर करेगा। सरकार का उद्देश्य है कि बड़े बैंक ज्यादा प्रतिस्पर्धी बने, डिजिटल सेवाओं में तेजी लाएं और ग्राहक सेवा को बेहतर बनाएं। यह कदम बाजार में स्थिति को बदल सकता है, क्योंकि वर्तमान में बैंक ऑफ बड़ौदा देश का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है।
इस विलय से बैंक की शाखाएं और सेवाएं भी आपस में बेस्ट तरीके से जुड़ेंगी, जिससे ग्राहकों को ज्यादा सुविधा मिलेगी। लेकिन इसी के साथ कई चुनौतियां भी हैं, जैसे दोनों बैंकों की कार्यप्रक्रियाओं को एक जैसा बनाना, कर्मचारियों के लिए नई व्यवस्थाएं और टेक्नोलॉजी का एकीकरण। इसके अलावा इस पूरी प्रक्रिया में थोड़ी मुश्किलें आ सकती हैं, जैसे अस्थायी सेवाओं की रुकावट।
सरकार ने यह भी बताया है कि यह विलय जल्दी में नहीं होगा, बल्कि योजना के मुताबिक इसे धीरे-धीरे और सोच-समझ कर लागू किया जाएगा। यह प्रक्रिया आर्थिक वर्ष 2026-27 के आसपास शुरू हो सकती है। साथ ही दूसरे चेन्नई स्थित बैंक इंडियन बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक का भी विलय सम्भावित है। वहीं, पंजाब एंड सिंध बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को प्राइवेटाइजेशन की दिशा में लेकर आगे बढ़ने की योजना है।
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इस बदलाव की खबर से यह भी पता चलता है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्रीय बैंकों को मज़बूत करने के लिए लगातार काम कर रही है ताकि वे बड़े प्राइवेट बैंको के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर सकें और पूरे देश के विकास में अपना योगदान दे सकें।
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सबसे पहले तो यह जान लीजिए कि मर्जर के बाद आप बैंक के ग्राहक बने रहेंगे। आपके खाते का प्रतिशत, जमा, लोन, एफडी जैसी सुविधाओं में कोई नुकसान या बदलाव नहीं होगा। लेकिन आपको कुछ बदलावों के लिए तैयार रहना होगा। जैसे कि :
- आपका अकाउंट नंबर या कस्टमर आईडी बदल सकती है। मतलब, नए बैंक का एक यूनिक आईडी आपको मिलेगा। इसलिए जरूरी है कि आपका मोबाइल नंबर और ईमेल बैंक में अपडेट रहे ताकि सारे बदलावों की जानकारी आप तक ठीक से पहुंच सके।
- आपकी चेकबुक, डेबिट या क्रेडिट कार्ड कुछ समय बाद नए बैंक के नाम और डिज़ाइन के साथ जारी हो सकता है। शुरू में पुरानी चेकबुक कुछ समय तक इस्तेमाल हो सकती है, लेकिन उसे बाद में बदलना पड़ेगा।
- IFSC कोड में बदलाव होगा, क्योंकि नए बैंक के ब्रांच और सर्विसेज की नई पहचान बनती है। इसलिए आपको अपने निवेश, जैसे म्यूचुअल फंड, बीमा, SIP, EMI, ऑटो पेमेंट्स आदि में IFSC अपडेट करना होगा ताकि पेमेंट्स ठीक से होते रहें।
- मर्जर के चलते बैंक की कुछ शाखाएं एक स्थान पर हो सकती हैं, तो जरूरत पड़ने पर उन ब्रांचों को समेकित कर बंद किया जा सकता है।
- इससे आपको थोड़ी असुविधा हो सकती है परन्तु बैंक ऐसी व्यवस्था करेगा कि आपको जरूरत के हिसाब से सेवा मिलती रहे।आपके फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) की ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं होगा। जो ब्याज दर पहले तय हुई है, वह मर्जर के बाद भी वैसी ही रहेगी।
- लोन के ब्याज दरों में भी अचानक बदलाव की संभावना कम होती है।
- तकनीकी स्तर पर बैंक की सेवाएं बेहतर हो सकती हैं क्योंकि विलय के बाद संसाधन और नेटवर्क बड़ा होगा, जिससे डिजिटल और शाखा सेवाओं में सुधार संभव है।
- कर्मचारी और बैंकिंग सिस्टम को मिलाने में समय लगेगा, इसलिए प्रारंभिक दिनों में कुछ असुविधाएं आ सकती हैं, लेकिन लंबी अवधि में यह बदलाव ग्राहकों के लिए फायदेमंद होगा।
- बैंक की नई इकाई मजबूत पूंजी और बड़े नेटवर्क के साथ काम करेगी, जिसका सीधा फायदा ग्राहकों को बेहतर सेवाओं और ज्यादा किफायती ऋण तथा उत्पादों के रूप में होगा।
संक्षेप में कहें तो, मर्जर के एक-दो महीनों तक आपको थोड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे नई चेकबुक का इंतजार, IFSC बदलने की जरूरत, और शाखा की जगह में बदलाव, लेकिन बाद में यह आपको बेहतर बैंकिंग सेवाएं देगा। सरकार और बैंक प्रबंधन इस बदलाव को ग्राहकों के लिए जितना संभव हो सरल और पारदर्शी बनाने की कोशिश करेंगे।
