डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा के लिए सालाना $100,000 (लगभग 83 लाख रुपये) शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। यह ऐतिहासिक निर्णय अमेरिकी प्रशासन की आप्रवासन नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है। इस ब्लॉग में नया शुल्क, पिछली फीस की तुलना और इसके प्रभावों का विश्लेषण किया गया है.
H-1B वीजा: नई और पुरानी फीस का तुलनात्मक विश्लेषण : –
ट्रम्प प्रशासन के नये निर्णय के अनुसार, किसी भी अमेरिकी कंपनी को हर विदेशी H-1B कर्मचारी के लिए हर वर्ष $100,000 की फीस चुकानी होगी। अब यह फीस केवल आवेदन या चयन के लिए नहीं, बल्कि वीजा की पूरी अवधि (अधिकतम 6 साल) के दौरान हर साल देनी होगी.
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पुरानी व्यवस्था : –
- H-1B वीजा लॉटरी में प्रवेश शुल्क: $215 (लगभग Rs.18,000)
- बेसिक फाइलिंग फीस: $460 (लगभग Rs.38,000)
- अमेरिकी कार्यबल प्रशिक्षण शुल्क: $750 या $1,500 (कंपनी के आकार पर निर्भर)
- धोखाधड़ी प्रिवेंशन फी: $500 (पहली बार आवेदन पर)
- प्रीमियम प्रोसेसिंग: $2,500 (ऑप्शनल)
- कुल खर्च आमतौर पर $2,000-6,000 के बीच (सालाना नहीं, बल्कि आवेदन या नवीनीकरण के वक्त)
नई व्यवस्था (2025 से) : –
- वार्षिक शुल्क: $100,000 प्रति वीजा प्रति वर्ष (अनिवार्य)
- ऊपर उल्लेखित अन्य फाइलिंग फीस बनी रहेंगी
- कुल खर्च 6 साल के लिए $600,000 + अन्य फीसें
नई नीति का उद्देश्य
सरकार का तर्क है कि वीजा सिस्टम का उद्देश्य हमेशा ही उच्च कौशल वाले, कठिनाइयों से भरे क्षेत्रों और अमेरिकी वर्कफोर्स में खामियों को भरना था। लेकिन पिछले कुछ सालों में बड़ी आईटी कंपनियों, खासकर भारत और चीन की कंपनियों ने, इसका बड़े स्तर पर प्रयोग किया। ट्रम्प का मकसद है कि इतनी ऊँची फीस से केवल वही कंपनियां वाकई विश्व-स्तरीय और अनाज-श्रेष्ट विदेशी कर्मचारियों को ला पाएं, जो उन्हें किसी कीमत पर खोना नहीं चाहतीं.
ट्रम्प ने कहा – ”अब कंपनियां केवल जरूरत पड़ने पर हायरिंग करेंगी, और अमेरिकी स्नातकों को प्राथमिकता देंगी।”
भारतीय कंपनियाँ और प्रोफेशनल्स पर असर : –
अमेरिका के H-1B वीजा होल्डर्स में सबसे ज्यादा हिस्सा भारतीय पेशेवरों का ही रहता है—2024 में कुल H-1B वीजा होल्डर्स में लगभग 71% भारतीय थे. टेक्नोलॉजी सेक्टर में अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी बड़ी कंपनियां भी इन वीज़ा पर निर्भर हैं; इनमें कई कंपनियाँ सालाना 10,000+ H-1B वीजा लेती हैं.
नई फीस के लागू होते ही:
- केवल चुनिंदा, बड़ी, उच्च लाभ वाली कंपनियां ही विदेशी कर्मचारियों को रख सकेंगी।
- भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स की अमेरिका में नए जॉब्स के मौके घट सकते हैं।
- छोटे स्टार्टअप और मिड-साइज फर्म्स के लिए विदेशी टैलेंट लाना व्यावहारिक नहीं रहेगा.
आलोचना और प्रतिक्रिया : –
अमेरिकन लेबर एसोसिएशन, रिपब्लिकन पार्टी के एक तबके और लेबर एक्टिविस्ट्स ने फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि अब कंपनियां अमेरिकी ग्रेजुएट्स को प्राथमिकता देंगी और वेतन स्तर ऊपर जाएगा.
दूसरी ओर, कई टेक्नोलॉजी कंपनियां और प्रवासी संगठन इस बदलाव को अमेरिका की प्रतिभा और नवाचार शक्ति के लिए नुकसानदायक मान रहे हैं। उनका कहना है यह देश को टैलेंट हब से वंचित कर देगा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेल देगा
ट्रम्प की यह नई H-1B नीति अमेरिका में नौकरी की तलाश कर रहे लाखों भारतीयों व अन्य विदेशी पेशेवरों के लिए बड़ा झटका है। जहाँ पहले आवेदन खर्च $2,000-$6,000 होता था, वही अब वार्षिक शुल्क ही $100,000 हो गया है—यह ऐतिहासिक, नीतिगत और आर्थिक रूप से एक क्रांतिकारी परिवर्तन है.
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